Tuesday, 25 September 2018

फिल्म समीक्षा : आम आदमी की खींचातानी है 'बत्ती गुल और मीटर चालू' की कहानी


फिल्म: बत्ती गुल मीटर चालू
कलाकार: शाहिद कपूर,श्रद्धा कपूर, दिव्येंदु शर्मा, यामी गौतम.
निर्देशक: श्री नारायण सिंह
रेटिंग: 2.5 / 5
# बिजली विभाग की ग़लती और भ्रष्टाचार के चलते किस तरह एक आम इंसान को परेशानियों का सामना करना पड़ता है, इसे ही फिल्म में मुख्य रूप से दिखाया गया है

फिल्म की कहानी उत्तराखंड के टिहरी जिले की है. कहानी तीन दोस्तों सुशील कुमार पंत (शाहिद कपूर), ललिता नौटियाल (श्रद्धा कपूर) और सुंदर मोहन त्रिपाठी (दिव्येंदु शर्मा) की है. ये एक-दूसरे के जिगरी यार हैं. सुशील कुमार ने वकालत की है, वहीं ललिता डिजाइनर हैं और सुंदर ने एक प्रिंटिंग प्रेस का धंधा शुरू किया है. उत्तराखंड में बिजली की समस्या काफी गंभीर है और ज्यादातर बिजली कटी हुई ही रहती है. सुंदर की फैक्ट्री के बिजली का बिल हमेशा ज्यादा आता है और एक बार तो 54 लाख रुपए तक का बिल जाता है. इस वजह से वो शिकायत तो दर्ज करता है, लेकिन उसकी बात सुनी नहीं जाती. एक ऐसा दौर आता है जब वह बेबसी में आत्महत्या कर लेता है. इस वजह से सुशील और ललिता शॉक हो जाते हैं. सुशील अपने दोस्त के इस केस को लड़ने का फैसला करता है. कोर्टरूम में उसकी जिरह वकील गुलनार (यामी गौतम) से होती है. आखिर में एक फैसला आता है, जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

#  श्रद्धा कपूर फैशन डिज़ाइनर हैं. दो दोस्तों के बीच में फंसी एक प्रेमिका, पर उन तीनों की बॉन्डिंग देखने काबिल है. यामी गौतम एडवोकेट की छोटी भूमिका में अपना प्रभाव छोड़ती हैं. कोर्ट के सीन्स दिलचस्प हैं. शाहिद कपूर, श्रद्धा कपूर, यामी गौतम, दिव्येंदु शर्मा सभी कलाकारों ने सहज और उम्दा अभिनय किया है. श्रीनारायण सिंह टॉयलेट- एक प्रेम कथा के बाद एक बार फिर गंभीर विषय पर सटीक प्रहार करते हैं. अनु मलिक रोचक कोहली का संगीत और संचित-परंपरा के गीत सुमधुर हैं. अंशुमन महाले की सिनेमैटोेग्राफी लाजवाब है. निर्माताओं की टीम भूषण कुमार, कृष्ण कुमार निशांत पिट्टी ने सार्थक विषय को पर्दे पर लाने की एक ईमानदार कोशिश की है.

# फिल्म का उद्देश्य सही है लेकिन उस समय अमल नहीं किया गया. फिल्म 2 घंटे 55 मिनट लंबी है जो काफी स्लो और बोरिंग है. इस फिल्म की एडिटिंग खुद डायरेक्टर ने की है इसलिए फिल्म के फ्लो में काफी कमियां है. फिल्म काफी लंबी बन गई है। कहानी को खींचा गया है. यह फिल्म रियल मुददे पर बनाई गई है. फिल्म निर्माताओं का इरादा नेक है लेकिन सही प्रेजेंटेशन के अभाव में उतनी प्रभावी नहीं है जितनी इसे होना चाहिए था.


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